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Wednesday, July 8, 2020

कुछ यादें पुराने झरोखों से

सन् २००२ की बात है,दसवीं कक्षा में था मैं | मेट्रिक का एग्जाम चल रहा था मेरा और BS कॉलेज दानापुर में सेंटर आ गया था | बैशाख का महीना था और मार्च की सुर्ख गर्मी | सुबह को थोड़ी ठंडी और दोपहर को थोड़ी जालिम | बिहार में जैसे जैसे लालूराज ख़तम हो रहा था और गंगाजी का पानी भी धीरे धीरे वैसे ही कम हो रहा था |



वैसे एक बात बता देते हैं की किसी भी बिहारी के लिए बिहार बोर्ड का मैट्रिक एग्जाम जो होता है न वह लक्ष्मण रेखा की तरह होता है | उसको जो पार कर लिए तो फिर आपको ज़िन्दगी दे पटखनी दे पटखनी | लेकिन खैर उस ज़िन्दगी की कथा कभी और.

तो बात यह है की मैं जाता था अपने पापा के साथ बैठ के सेंटर पर एग्जाम देने सुबह सुबह | उस समय परीक्षा दो चरणों में हुआ करती थी | एक होती थी सुबह १० से १ और दूसरी होती थी २ से ५ | मम्मी लंच पैक कर के दे देती थी मेरा और पापा दोनों का और साथ में २ लीटर ठंडा ठंडा पानी वैशाख की गर्मी से बचने के लिए | सब कुछ ठीक था .. घंटी बजती थी . एडमिट कार्ड दिखाओ . चीट पुर्जा चेक कराओ अंदर जाओ ..और अपना घंटा बजवाओ पेपर देख के | क्यूंकि बिहार बोर्ड का हाल ऐसा था की आप कुछ भी कर लो कितना भी लिख लो नंबर तो निरीक्षक की बीवी के मूड पर निर्भर करता था

खैर छोड़िये उनको , यह किस्सा हमारा है … तो बात यह है की BS कॉलेज बसा था गंगा नदी के किनारे ..यह कॉलेज की रेखा समापत हुई और वह पीछे की तरफ गंगा जी की बयार चालु और बस उसी का इंतज़ार रहता था मुझे पुरे दिन में . पुरे दिन में १० मिनट मिलता था मुझे जब बीच के १ घंटे के लंच ब्रेक में पापा के साथ बाहर जाके पूरी भुजिया निपटाटा था और साथ में बुक पलट पलट के लास्ट टाइम हनुमान चालीसा पढता था | पापा पूछते थे जल्दी क्या है आराम से खाओ लेकिन हमको १० मिनट पहले सब कुछ निपटाना था २ बजने से पहले | इधर मेरा पूरी भुजिया ख़तम और उधर हमने तपाक से हाथ धोया और बाबूजी का आशीर्वाद लेके दौर लिए सेंटर के अंदर | थोड़ा दोस्त वोस्ट से मिले बात की और भाग निकले गंगा जी से आशीर्वाद लेने | कॉलेज की चारदीवारी पर चढ़े और १० मिनट के लिए आसन लगा बैठे

आज का मैडिटेशन फेडिटेशन सब व्यर्थ है क्यूंकि जो सुकून गंगा जी के किनारे बैठ के वह १० मिनट में आता था वैसा सुकून आज तक नहीं आया | कोई वहां पाप धो रहा होता था तो कोई अपनी ज़िन्दगी सवार रहा होता था नौका चला के | बैसाख के उस दोपहरिया में हलकी हलकी सी लू की छोटी बहन घुमा करती थी जिसको गंगा जी अपना आशीर्वाद दे देती थी और वह हमें आके थोड़ी सी ठंडक |

मेट्रिक का एग्जाम हो गया पास भी हो गए | बड़े भी हो गए लेकिन आज भी जब कभी अप्रैल मई के महीने में रूम की खिड़की खोलने पर वह हवा पता पूछती है तो वही गंगा जी और वही कॉलेज की चारदीवारी पर बैठा १४ साल का लड़का याद आ जाता है | एकटक लगा के देखता हुआ गंगा की बहती बयार को सोचता हुआ की यार यह नौका पर बैठ के घूमने में कितना मजा आता होगा , नहीं ?

कुछ यादें बचपन से


कुछ साल पहले की बात है

घर के बरामदे में बैठा बैठा अपने स्मार्टफोन पर गाने सुन रहा था और साथ में डेली न्यूज़ चेक कर रहा था व्हाट्सअप पर …
मैं अपने धुन में मस्त था की अनायास ही मेरी नज़र सामने वाले टीवी टावर पर चली गई | अलग ही है यह चीज़ | पचीसिओं मंजिल जितना ऊँचा , शायद उससे ज्यादा ही होगा | गगनचुम्बी शायद इसे ही कहते है | आजतक इससे ऊँचा कुछ नहीं देखा | दूर से ही दीखता है | किसी को भी बचपन में घर का पता बताना होता था तो कह देते थे की अरे वह टीवी टावर के पास है | वो देख रहे हो न , हाँ हाँ वही पर |

अलग ही सम्मोहन सी शक्ति है ..

बचपन में स्कूल भी बगल में ही था मेरा इसके | वहां से भी दीखता था | एक दो बार दूरदर्शन का प्रशारण बंद हुआ था तो हेलीकाप्टर से ठीक करने आये थे इसके माथे को | हमको हेलीकाप्टर तो दिखा नहीं था बचपन में लेकिन क्या करे अगर बोल देते की साला कहाँ है हेलीकाप्टर हमको नहीं दिख रहा तो बच्चा सब गधा गधा बोल के चिढ़ा देता पूरा स्कूल में तो मिला दिए सुर में सुर हम भी | लेकिन कुछ तो ठीक किया गया था क्यों दूरदर्शन वापस से आने लगा था और " हम लोग " , " सुरभि " , "रंगोली " , " नुक्कड़ " सब चालू हो गया था टपक से |

स्कूल कोई बड़ा था नहीं मेरा | किराये की बिल्डिंग थी और उसमें कुछ काम चलाव झोपड़ियां और उनमें ही लगती थी मेरी क्लास लेकिन दोस्तों के साथ वही क्लास आज MBA के क्लास को भी पीछे छोड़ देती है| स्कूल था तो थोड़ा छोटा लेकिन स्पोर्ट्स के फेस्टिवल जरूर करवाता था वह भी इसी टीवी टावर के कंपाउंड में | पूरा स्कूल जमा होता था | मेला लगता था और सबसे अच्छी बात की उसमें होती थी तरह तरह की रेसेस जैसे की स्पून रेस , मैथ रेस , रेमेम्बेरिंग रेस और सही से मस्ती करो तो मिलते थे तरह तरह के अवार्ड्स | मैंने भी जीते थे काफी मैथ रेस क्यूंकि दौड़ने में भले नहीं अच्छा था लेकिन मैथ के प्रॉब्लम बनाने में टकाटक

 लेकिन इन सब से अच्छी बात होती थी टिफ़िन की | टीवी टावर के पीछे एक नहर होती थी ( थी क्या आज भी है ) जो मेरे घर तक जाती थी | माँ भले कभी आये न आये लेकिन स्पोर्ट्स डे के दिन जरूर आती थी हमारा गेम देखने और हम तैयार रहते थे माँ के हाथ का हलवा खाने को | भाड़ में गया स्पोर्ट्स टोस्पोर्ट्स , हलवा याद रहता था हरसमय | जैसे ही मम्मी आती दिखती थी , हम लोग दूर से हिरन के छोटे छोटे बच्चों की तरह कुलांचे भरने लगते थे उसी टीवी टावर के मैदानों में और लिपट जाते थे मम्मी से बोलते हुए की हलवा खिलाओ
आज न तो वो मैदान बचा है और न ही मेरा स्कूल बचा है

लेकिन वह टीवी टावर आज भी है | आज भी है याद दिलाता हुआ उसी हलवे की महक याद दिला कर .. आज भी खुश हो जाता हूँ की कुछ तो है इन कंक्रीट के जंगलों में जो आज भी मेरे बचपन की याद को ज़िंदा रखा हुआ है

Wednesday, May 27, 2020

मैं बुरा था या नही

तू कहती है की मैं बुरा हूँ |



तू कोसती है यह कह की मैंने तेरी कभी फ़िक्र न की | तू ताने मरती है की मैंने कभी तेरा धयान नहीं रखा|

हो सकता है तू सही कह रही हो | हो सकता है की मैं थोड़ा सा खड़ूस था | अजीब सा था मैं | काफी अजीब सा

मैं खुद को दूर रखता था इनसब से | क्यूंकि मुझे विस्वास नहीं था की मुझे दुबारा से कभी प्यार हो पायेगा दुबारा से फिर किसी के बारे में दिल से सोच पाउँगा , फिर किसी के बारे में ख़याली पुलाव पकाऊँगा , की कैसे हम लोग साथ रहेंगे कैसे हम लोगों के बचे होंगे कैसे हम लोग अपना पुलिंदा बनाएंगे | काफी सोचता था मैंने

लेकिन किसी और के साथ | थी वो एक लड़की | अच्छी लगती थी मुझे | काफी पसंद भी करती थी लेकिन कभी जिक्र नहीं करा | बिलकुल वैसे ही धयान रखती थी जैसी की तू मेरा | लेकिन फर्क सिर्फ इतना था की मैंने भी रखना चालू करा था उसका धयान | सोचते थे की हम दोनों की शादी हो जाएगी तो यह करेंगे वह करेंगे ऐसे रहेंगे वैसे रहेंगे | लेकिन बेडा गर्क हो ऐसे समाज का जो अपने लिए जीने नहीं देता | समझ जीने देता है तो बस समझ के लिए |

चली गई वह किसी और के साथ जो उसके समाज का था लेकिन एक बार भी नहीं कहा उसने की में दिल का बुरा  था | चंद लम्हों में सीखा गई की इंसान कभी बुरा नहीं होता , बुरी होती है समाज , बुरा होता है वह हाल जिसमें हम रह कर कुछ कदम उठाते हैं

उठाया होगा मैंने भी कुछ कदम | दिखाई होगी मैंने भी कुछ बैरुखियाँ जिसको देखके तुझे लगा होगा थोड़ा अजीब

और कह दिया होगा तूने बहुत बुरा है तू

लेकिन में तो बस इतना ही कहूंगा की " मैं  दिल का बुरा नहीं हूँ "