सन् २००२ की बात है,दसवीं कक्षा में था मैं | मेट्रिक का एग्जाम चल रहा था मेरा और BS कॉलेज दानापुर में सेंटर आ गया था | बैशाख का महीना था और मार्च की सुर्ख गर्मी | सुबह को थोड़ी ठंडी और दोपहर को थोड़ी जालिम | बिहार में जैसे जैसे लालूराज ख़तम हो रहा था और गंगाजी का पानी भी धीरे धीरे वैसे ही कम हो रहा था |
वैसे एक बात बता देते हैं की किसी भी बिहारी के लिए बिहार बोर्ड का मैट्रिक एग्जाम जो होता है न वह लक्ष्मण रेखा की तरह होता है | उसको जो पार कर लिए तो फिर आपको ज़िन्दगी दे पटखनी दे पटखनी | लेकिन खैर उस ज़िन्दगी की कथा कभी और.
तो बात यह है की मैं जाता था अपने पापा के साथ बैठ के सेंटर पर एग्जाम देने सुबह सुबह | उस समय परीक्षा दो चरणों में हुआ करती थी | एक होती थी सुबह १० से १ और दूसरी होती थी २ से ५ | मम्मी लंच पैक कर के दे देती थी मेरा और पापा दोनों का और साथ में २ लीटर ठंडा ठंडा पानी वैशाख की गर्मी से बचने के लिए | सब कुछ ठीक था .. घंटी बजती थी . एडमिट कार्ड दिखाओ . चीट पुर्जा चेक कराओ अंदर जाओ ..और अपना घंटा बजवाओ पेपर देख के | क्यूंकि बिहार बोर्ड का हाल ऐसा था की आप कुछ भी कर लो कितना भी लिख लो नंबर तो निरीक्षक की बीवी के मूड पर निर्भर करता था
खैर छोड़िये उनको , यह किस्सा हमारा है … तो बात यह है की BS कॉलेज बसा था गंगा नदी के किनारे ..यह कॉलेज की रेखा समापत हुई और वह पीछे की तरफ गंगा जी की बयार चालु और बस उसी का इंतज़ार रहता था मुझे पुरे दिन में . पुरे दिन में १० मिनट मिलता था मुझे जब बीच के १ घंटे के लंच ब्रेक में पापा के साथ बाहर जाके पूरी भुजिया निपटाटा था और साथ में बुक पलट पलट के लास्ट टाइम हनुमान चालीसा पढता था | पापा पूछते थे जल्दी क्या है आराम से खाओ लेकिन हमको १० मिनट पहले सब कुछ निपटाना था २ बजने से पहले | इधर मेरा पूरी भुजिया ख़तम और उधर हमने तपाक से हाथ धोया और बाबूजी का आशीर्वाद लेके दौर लिए सेंटर के अंदर | थोड़ा दोस्त वोस्ट से मिले बात की और भाग निकले गंगा जी से आशीर्वाद लेने | कॉलेज की चारदीवारी पर चढ़े और १० मिनट के लिए आसन लगा बैठे
आज का मैडिटेशन फेडिटेशन सब व्यर्थ है क्यूंकि जो सुकून गंगा जी के किनारे बैठ के वह १० मिनट में आता था वैसा सुकून आज तक नहीं आया | कोई वहां पाप धो रहा होता था तो कोई अपनी ज़िन्दगी सवार रहा होता था नौका चला के | बैसाख के उस दोपहरिया में हलकी हलकी सी लू की छोटी बहन घुमा करती थी जिसको गंगा जी अपना आशीर्वाद दे देती थी और वह हमें आके थोड़ी सी ठंडक |
मेट्रिक का एग्जाम हो गया पास भी हो गए | बड़े भी हो गए लेकिन आज भी जब कभी अप्रैल मई के महीने में रूम की खिड़की खोलने पर वह हवा पता पूछती है तो वही गंगा जी और वही कॉलेज की चारदीवारी पर बैठा १४ साल का लड़का याद आ जाता है | एकटक लगा के देखता हुआ गंगा की बहती बयार को सोचता हुआ की यार यह नौका पर बैठ के घूमने में कितना मजा आता होगा , नहीं ?
वैसे एक बात बता देते हैं की किसी भी बिहारी के लिए बिहार बोर्ड का मैट्रिक एग्जाम जो होता है न वह लक्ष्मण रेखा की तरह होता है | उसको जो पार कर लिए तो फिर आपको ज़िन्दगी दे पटखनी दे पटखनी | लेकिन खैर उस ज़िन्दगी की कथा कभी और.
तो बात यह है की मैं जाता था अपने पापा के साथ बैठ के सेंटर पर एग्जाम देने सुबह सुबह | उस समय परीक्षा दो चरणों में हुआ करती थी | एक होती थी सुबह १० से १ और दूसरी होती थी २ से ५ | मम्मी लंच पैक कर के दे देती थी मेरा और पापा दोनों का और साथ में २ लीटर ठंडा ठंडा पानी वैशाख की गर्मी से बचने के लिए | सब कुछ ठीक था .. घंटी बजती थी . एडमिट कार्ड दिखाओ . चीट पुर्जा चेक कराओ अंदर जाओ ..और अपना घंटा बजवाओ पेपर देख के | क्यूंकि बिहार बोर्ड का हाल ऐसा था की आप कुछ भी कर लो कितना भी लिख लो नंबर तो निरीक्षक की बीवी के मूड पर निर्भर करता था
खैर छोड़िये उनको , यह किस्सा हमारा है … तो बात यह है की BS कॉलेज बसा था गंगा नदी के किनारे ..यह कॉलेज की रेखा समापत हुई और वह पीछे की तरफ गंगा जी की बयार चालु और बस उसी का इंतज़ार रहता था मुझे पुरे दिन में . पुरे दिन में १० मिनट मिलता था मुझे जब बीच के १ घंटे के लंच ब्रेक में पापा के साथ बाहर जाके पूरी भुजिया निपटाटा था और साथ में बुक पलट पलट के लास्ट टाइम हनुमान चालीसा पढता था | पापा पूछते थे जल्दी क्या है आराम से खाओ लेकिन हमको १० मिनट पहले सब कुछ निपटाना था २ बजने से पहले | इधर मेरा पूरी भुजिया ख़तम और उधर हमने तपाक से हाथ धोया और बाबूजी का आशीर्वाद लेके दौर लिए सेंटर के अंदर | थोड़ा दोस्त वोस्ट से मिले बात की और भाग निकले गंगा जी से आशीर्वाद लेने | कॉलेज की चारदीवारी पर चढ़े और १० मिनट के लिए आसन लगा बैठे
आज का मैडिटेशन फेडिटेशन सब व्यर्थ है क्यूंकि जो सुकून गंगा जी के किनारे बैठ के वह १० मिनट में आता था वैसा सुकून आज तक नहीं आया | कोई वहां पाप धो रहा होता था तो कोई अपनी ज़िन्दगी सवार रहा होता था नौका चला के | बैसाख के उस दोपहरिया में हलकी हलकी सी लू की छोटी बहन घुमा करती थी जिसको गंगा जी अपना आशीर्वाद दे देती थी और वह हमें आके थोड़ी सी ठंडक |
मेट्रिक का एग्जाम हो गया पास भी हो गए | बड़े भी हो गए लेकिन आज भी जब कभी अप्रैल मई के महीने में रूम की खिड़की खोलने पर वह हवा पता पूछती है तो वही गंगा जी और वही कॉलेज की चारदीवारी पर बैठा १४ साल का लड़का याद आ जाता है | एकटक लगा के देखता हुआ गंगा की बहती बयार को सोचता हुआ की यार यह नौका पर बैठ के घूमने में कितना मजा आता होगा , नहीं ?